हमारे बारे में
भारत सरकार द्वारा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन 3 फरवरी, 1947 को केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गयी और बाद में वर्ष 1967 में संस्थान को भा कृ अनु प परिवार में जोड़ दिया गया. स्थापना के पश्चात् लगभग 65 वर्षों के दौरान संस्थान विश्व में ही अग्रणी उष्णकटिबंधीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान बन गया.
स्थापना के बाद सी एम एफ आर आइ के आकार और महानता में प्रगति हुई है और पर्याप्त अनुसंधान अवसंरचनाएं बनायी गयी और योग्य कर्मचारियों की भर्ती की गयी. कार्यकाल के पचास दशकों के पहले चरण में, सी एम एफ आर आइ ने समुद्री मात्स्यिकी अवतरण और प्रयास के आकलन, समुद्री जीवों के वर्गीकरण विज्ञान और विदोहित पखमछली और कवच मछली स्टॉक की जैव-आर्थिक विशेषताओं पर ध्यान दिया. इस अनुसंधान प्रयास ने साठ के वर्षों तक चालू कारीगरी, आजीविका मात्स्यिकी से जटिल, बहु गिअर, बहु जातीय मात्स्यिकी के लिए महत्वपूर्ण योगदान किया.
सी एम एफ आर आइ की प्रमुख उपलब्धि 8000 कि. मी. से अधिक होने वाली तटरेखा से मात्स्यिकी पकड़ एवं प्रयास का आकलन करने के लिए विशेष तरीका, जिसे “स्ट्राटिफाइड मल्टीस्टेज रान्डम साम्प्लिंग मेथेड” कहा जाता है, का विकास एवं संशोधन है. इस प्रणाली से संस्थान भारत के सभी समुद्रवर्ती राज्यों से पकड़ी गयी 1000 से अधिक प्रजातियों से संबंधित 9 मिलियन पकड़ एवं प्रयास के डाटा रिकार्डों सहित राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी आंकड़ा केन्द्र (एन एम एफ डी सी) का अनुरक्षण कर रहा है.
उन्नीस सौ सत्तर के प्रारंभ के वर्षों के दौरान सी एम एफ आर आइ को यह मालूम पड़ा कि सिर्फ प्रग्रहण मात्स्यिकी से देश की बढ़ती हुई आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं की जा सकेगी और तटीय समुद्री संवर्धन और समुद्र रैंचन से उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत है. इसके परिणामस्वरूप अनुसंधान प्रयासों का प्रमुख भाग समुद्र कृषि और तटीय समुद्र कृषि के लिए बांटा गया. इस प्रयास से चिंगट, खाद्य शुक्ति, शंबु, सीपी और समुद्री शैवालों और समुद्री मोति की स्फुटनशाला प्रौद्योगिकियों द्वारा अधिकाधिक लाभांश प्राप्त हुआ. इसके अतिरिक्त समुद्री संवर्धन में स्नातकोत्तर कार्यक्रम, जिसमें एम एफ एस सी और पी एच डी पाठ्यक्रम सम्मिलित हैं, द्वारा समुद्री संवर्धन में मानव संपदा का भी सफलतापूर्वक विकास किया गया.
बाद में, आधा शतक से लेकर बनायी गयी अवसंरचनाओं और विशेषज्ञता और राष्ट्र की आगामी आवश्यकताओं को प्रमुखता देते हुए सी एम एफ आर आइ ने नए क्षेत्रों जैसे समुद्री पखमछली पालन, जैप्रौद्योगिकी और जैवविविधता में अनुसंधान कार्य शुरू किए. इनके साथ हरएक समुद्रवर्ती राज्य के लिए मात्स्यिकी प्रबंधन योजना का रूपायन किया और संस्थान ने तटीय आवास तंत्र और मछुआरों पर बुरा असर डालने वाले जलवायु परिवर्तन मुद्दों का संबोधन किया. समुद्र कृषि में, द्विकपाटियों का वाणिज्यिक तौर का पालन इस सदी के प्रारंभ में ही लोकप्रिय महिला सशक्तीकरण कार्यक्रम बन गया. पखमछली पालन में विकसित नयी जानकारियों एवं प्रौद्योगिकियों को उपभोक्ताओं तक पहॅुंचायी गयी और समुद्री जैवप्रौद्योगिकी में कई आधुनिक प्रौद्योगिकियों का पेटेन्ट कराया गया.
समु्द्री प्रग्रहण एवं पालन मात्स्यिकी में संस्थान के बहुविषयक पहल से विश्व की किसी भी सुव्यवस्थित समुद्री प्रयोगशाला की तुलना में अग्रणी संस्थान की मान्यता प्राप्त हुई.
Senior Management Positions. वरिष्ठ प्रबंधन पद
पदनाम / Designation | नाम / Name |
निदेशक | डॉ. ए. गोपालकृष्ण्ान |
अध्यक्ष, मात्स्यिकी संपदा निर्धारण प्रभाग | डॉ. टी. वी. सत्यानन्दन |
अध्यक्ष, वेलापवर्ती मात्स्यिकी प्रभाग | डॉ. प्रतिभा रोहित (प्रभारी) |
अध्यक्ष, तलमज्जी मात्स्यिकी प्रभाग | डॉ. पी. यु. ज़क्करिया |
अध्यक्ष, क्रस्टेशियन मात्स्यिकी प्रभाग | डॉ. जी. महेश्वरुडु |
अध्यक्ष, मोलस्कन मात्स्यिकी प्रभाग | डॉ. के. सुनिलकुमार मोहम्मद |
अध्यक्ष, मात्स्यिकी पर्यावरण प्रबंधन प्रभाग | डॉ. वी. कृपा (प्रभारी) |
अध्यक्ष, समुद्री जैवप्रौद्योगिकी प्रभाग | डॉ. पी. विजयगोपाल (प्रभारी) |
अध्यक्ष, समाज-आर्थिक मूल्यांकन एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रभाग | डॉ. आर. नारायणकुमार |
अध्यक्ष, तलमज्जी समुद्री जैवविविधता प्रभाग | डॉ. के. के. जोषी |
अध्यक्ष, समुद्री संवर्धन प्रभाग | डॉ. इमेल्डा जोसफ (प्रभारी) |
मुख्य प्रशासनिक अधिकारी | श्री सी. मुरलीधरन |
मुख्य वित्त एवं लेखा अधिकारी | श्री ए. वी. जोसफ |
सतर्कता अधिकारी | डॉ. पी. विजयगोपाल |