भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद
केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान

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उत्तर आन्ध्र प्रदेश तट में संभाव्य मत्स्यन क्षेत्रों में गहराई वार घटनाओं की प्रवृत्ति

   विविध गहराई पर संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र की घटनाओं की आवृत्ति जानने हेतु  इंडियन नेशनल सेंटर फोर ओशन इन्फ़ॉर्मेशन सर्विसेज, हैदराबाद से उत्तर आंध्र प्रदेश तट के संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र (PFZ) के सलाहों का 2 साल 2012-2013 (जनवरी से दिसंबर) वर्ष-वार सलाह, का विश्लेषण किया गया. पी एफ इज़ेड का ग्रिड वार अंकन यह दिखाता है कि तटीय क्षेत्रो में उच्च एवं उच्च आवृत्ति ग्रिड कम मात्रा में था. अंकन से यह भी पता चला कि तुलना की गयी तीन क्षेत्रो में से 100 मी. की गहराई से अधिक महाद्वीपीय ढालू  क्षेत्र है जो अधिक आवृत्तिवाले ग्रिड हैं जिसके बाद 50 एवं 100 मी. की गहराई में मध्य महाद्वीपीय ढाल है. यह पाया गया कि पी पी इज़ेड की आवृत्ति 200 मी. की गहराई तक बढ़ती है जिसके बाद घटती है. काकिनाडा समुद्र से कलिंगपट्टणम समुद्र तक उच्च अक्षांश की ओर जाने पर पी एफ इज़ेड की आवृत्ति की घटना बढ़ती पायी जाती है.

समुद्री पख मछली ब्रूड स्टॉक विकास के लिए पुनः परिसंचरण जलजीवपालन प्रणाली का डिज़ाइन एवं निष्पादन

भारत में उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय जलवायु स्थितियां उष्णकटिबंधीय समुद्री पख मछली जलजीवपालन में अग्रणी होने के लिए आदर्श एवं अनूठा अवसर प्रदान करती है. संवर्धन के लिए समुद्री पख मछली बीज की अप्राप्यता के कारण समस्या बनी रहती है. इस समस्या के समाधान के लिए विविध उष्णकटिबंधीय समुद्री पख मछलियों के बीज उत्पादन के लिए ब्रूड स्टॉक विकास शुरु किया गया. समुद्री पख मछली ब्रूड स्टॉक विकास एवं प्रजनन के लिए आवश्यक पानी की विविध गुणता का प्रबंधन करने में पुनः परिसंचरण जलजीवपालन प्रणाली (आर ए एस) का डिज़ाइन एवं निष्पादन समझने के लिए वर्त्तमान अध्ययन किया गया था.

   वर्तमान अध्ययन में, आर ए एस डिज़ाइन के अंतर्गत ब्रूडस्टॉक टैंक, बीज संचयन चेंबर, इलेक्ट्रिकल पम्प, सैंड फिल्टर, वेंचुरी प्रकार के प्रोटीन स्किम्मेर एंवं बयोलोजिकल फिल्टर निहित हैं. आर ए एस के दो डिज़ाइन किए गए जिनमें से एक तलमज्जी मछली प्रजातियां, नारंगी चित्ती ग्रुपर (एपिनेफेलस कोइओइडस) से संभरित किया गया और दूसरा वेलापवर्ती मछली प्रजातियां, भारतीय पोम्पानो (ट्रकिनोटस मूकाली) जिसका  दर 1 एवं 0.5?कि. ग्रा./मी.3 थी और लिंग अनुपात क्रमशः 1:1 एवं 1:2 (मादा : नर) था. पानी की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए पुनः परिसंचरण जलजीवपालन प्रणाली का निष्पादन निर्धारित करने हेतु दोनों टैंकों के जल के विविध भौतिक – रासायनिक पैरामीटर जैसा कि कुल अमोनिया नैट्रजन (टी ए एन), नैट्राईट, नैट्रेट, पी एच, क्षारीयता, तापमान, मुक्त कार्बनडयोक्साइड (CO2) एवं विलीन आक्सीजन (DO) का विश्लेषण किया गया.

  मछलियों के जनन ग्रंथि का निर्धारण और अंडजनन कार्य का आकलन किया गया और अंततः प्रणाली के आर्थिक निष्पादन का मूल्यांकन भी किया गया. परीक्षण अवधि के दौरान आर ए एस टैंकों में नारंगी चित्ती ग्रुपर एवं भारतीय पोम्पानो के अमोनिया नाइट्रजन एवं नाइट्रैट का कुल मासिक औसत क्रमशः 0.07 एवं 0.06?मि. ग्रा. ?लि. ?1 एवं 0.02 and 0.01?मि. ग्रा. ?लि.?1 से कम था.

  दोनों पुनः परिसंचरण प्रणालियों में पी एच (7.8–8.2) DO (>4?mg/L) एवं क्षारीयता (100–120?मि.ग्रा. /लि. )अधिकतम श्रेणी में पायी गयी. पूरी परीक्षण अवधि के दौरान दोनों प्रणालियों में कार्बनडयोक्साइड नहीं पाया गया. वास्तव में ये स्तर ब्रूडस्टॉक विकास के लिए रिपोर्ट की गयी अनुमेय सीमा से तुलनीय थे या उससे कम थे. भारतीय पोम्पानो एवं नारंगी चित्ती ग्रुपर परिपक्व हुई और निषेचित अंडों के उत्पादन के साथ पूरा वर्ष अंडजनन हुआ. आर्थिक मूल्यांकन में नारंगी चित्ती ग्रुपर के 10,000 निषेचित अंडों का मूल्य US $ 1.33 पाया गया. वर्तमान अध्ययन में प्रस्तुत आर ए एस डिज़ाइन तलमज्जी एवं वेलापवर्ती पख मछलियों के ब्रूड स्टॉक विकास के लिए पानी की गुणवत्ता को बनाए रखने एवं नियंत्रण करने में सक्षम है. आर ए एस में संभरित मछलियां पूर्ण परिपक्व हुई और वर्ष भर में अंडजनन भी हुआ.

भारत के दक्षिण पश्चिम तट के अरब सागर से करीड़ियन चिंगट लिस्मैटेल्ला प्रैमा बोराडेल, की नई रिकोर्ड

भारत के दक्षिण पश्चिम तट के अरेबियन समुद्र से करीड़ियन चिंगट लिस्मैटेल्ला प्रैमा बोराडेल, 1915 की नई रिकोर्ड की सूचना देते हैं. एल. प्रैमा. लिस्मैटेल्ला(बोराडेल, 1915) वंश के अंतर्गत पायी जानेवाली एकमात्र प्रजाति है बंगाल खाड़ी के अंदमान समुद्र से सदियों पहले इन प्रजातियों को आकलित किया गया. हमारे अनुसंधान पोत द्वारा किए गए सर्वेक्षण के दौरान 30 मी. (9o25’72” N 76o12’77” E) की गहराई से प्राप्त एकमात्र नमूना चित्रों सहित वर्णित किया है. यह रिकोर्ड इंडो पसफिक क्षेत्र में इन प्रजातियों के वितरण की सूचना देती है.

अंतर्ज्वारीय भूरे समुद्री शैवाल पड़ीना टेट्रास्टोमाटिक से प्रत्याशित एंटी इन्फ्लमेटरी निक्षेप

दक्षिण भारत से संग्रहित अंतर्ज्वारीय समुद्री शैवाल पाडिना टेट्रास्टोमाटिका (परिवार डिकटियोशे) के जैविक एक्स्ट्रेट से पहले असूचित नोवाक्सेनिन – टाइप क्सेनिन डिटरपिनोइड्स(1–2) के सेनिन वर्ग द्वारा उत्पादित सैक्लोनोना (डी) फ्यूरो (2,3-बी) पैरान्डियोल एवं तीन सीनियोलैड – टाइप डिटरपिनोइड्स सहित असाधारण ओक्टाहैड्रोसैक्लोनोना (सी) पैरन - 3(1 एच)- एक बैकबॉन (3–5) को अलग किया गया. यौगिकों को 2-ऑक्सीबाइक्लो [7.4.0] ट्राइडेकेन चक्रीय प्रणाली के साथ एक ज़ेनिकेन मौएटी को वहन करने के लिए घटाया गया था. व्यापक परमाणु चुंबकीय अनुनाद वर्णक्रमीय विश्लेषण और संबंधित यौगिकों की तुलना के आधार पर इन विशिष्ट मेटाबोलैटों की संरचनाओं को ज़िम्मेदार ठहराया गया था. नोन-स्टेरायडल विरोधी एंटी इन्फ्लामेटरी दवा इबुप्रोफेन (IC50 4.50? m; P <? 0.05) की तुलना में सेनियोलैड – टाइप डिटरपेनस (3–5) प्रो–इन्फ्लामेटरी 5-लिपोक्सीजेनेस (आइ सी 50?~?2.04?एम एम) के विरुद्ध काफी अधिक क्षीणन क्षमता दिखाई. सेनियोलैड यौगिक ओक्टाहैड्रो -1,7-डै हैड्रोक्सी -4- (41-हैड्रोक्सी -42-मीथाइल प्रोपाइल) -6- (61-हैड्रोक्सी -62-प्रोपेनिल ) -10- मीथाइल सैक्लोनोना  [c] पायरन -3 (1H) - एक (5) मानक एंटीऑक्सिडेंट एजेंट और –टोकोफेरोल (IC50? <? 2? एम एम) के साथ तुलनीय एंटीऑक्सिडेंट गतिविधि (डी पी पी एच आइ सी 50 1.73? एम एम) प्रदर्शित की. क्सेनिकेन के 5- लिपोक्सीजेनेस अवरोधक तंत्र को निर्दिष्ट करने के लिए सिलिको आण्विक मॉडलिंग अध्ययन किया गया और डोकिंग मापदंडों ने यह सुझाव दिया कि क्सेनियोलैड व्युत्पन्न 5 ने 11.56? Kcal? Mol?की कम बाध्यकारी ऊर्जा का प्रदर्शन किया और प्रो – इन्फ्लामेटरी एंजाइम के विरुद्ध उसकी अधिक अवरोधक क्षमता से संपुष्ट था. इन परिणामों से पता चला है कि  पूर्व असूचित – लाक्टोन सैक्लोनोनेन ढांचा सहित क्सेनियोलैड – टाइप डिटरपिनोइड्स प्रो – इन्फ्लामेटरी 5- लिपोक्सिजेनेस एंजाइम  निरोधात्मक गतिविधियों सहित आशाजनक एंटी – इन्फ्लामेटरी निक्षेपों की गठन कर सकती है.

उत्तर आन्ध्र प्रदेश तट के पास संभाव्य मत्स्यन क्षेत्रों की मौसमिक घटना

उत्तर आन्ध्रा तट के पी एफ इज़ेड में घटनाओं की आवृत्ति को समझने के लिए इंडियन नेशनल सेंटर फ़ॉर ओशन इन्फ़ॉर्मेशन सर्विसेज, हैदराबाद और उत्तर आन्ध्रा तट के सलाहकार से प्राप्त उत्तर आन्ध्रा प्रदेश तट के संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र (PFZ) डेटा को मौसम वार अलग किया गया और विश्लेषण किया गया. डेटा के अंकन से गर्मी के मौसम के दौरान पी एफ इज़ेड का स्थान तटीय क्षेत्रों के पास पता चला. पूर्व मानसून के दौरान ये क्षेत्र समुद्र के अधिक गहराई तक बदल जाते हैं और मानसून बढ़ने के अनुसार व्यापक क्षेत्र में विस्तृत होकर मानसून मौसम के बाद उत्तर की ओर बढ़ते है. डेटा अंकन से यह भी पता चला कि काकिनाडा खाड़ी के पास काकिनाडा समुद्र में निरंतर पी एफ इज़ेड की घटना पायी जाती है. विशाखपट्टणम समुद्र में मानसून के दौरान,मानसून के बाद एवं गर्मी के दौरान अधिक तीव्रता में पी एफ इज़ेड की घटना पायी गयी. कलिन्गपट्टणम समुद्र में मानसून के बाद, मानसून के दौरान एवं गर्मी के दौरान अधिक तीव्रता में पी एफ इज़ेड की घटना पायी गयी.

भारत से वाणिज्यिक प्रमुख गहरे समुद्र पेनिआइड चिंगट का एकीकृत वर्गीकरण

गहरा समुद्र पेनिआइड चिंगट भारतीय तट का वाणिज्यिक प्रमुख क्रस्टेशियन संपदा है. भारतीय तट से इस ग्रुप की आण्विक एवं आकृतिपरक जानकारी मुश्किल से जानी जाती है. इस अध्ययन में हम गहरे समुद्र पेनिआइड चिंगट के तीन सूत्रकणिका जीनों (सैटोक्रोम ओक्सिडेस उप यूनिट । (COI), सैटोक्रोम बी. 16एस आर एन ए) के ज़रिए उसके जातिवृत्तीय संबंध एवं पहचान की जांच की गयी है, जिसकी 54 आकृतिपरक विशेषताओं के साथ तुलना की गयी एवं विशेषता विकास का मूल्यांकन करने के लिए आगे उपयोग किया गया. इस अध्ययन में सी ओ आइ के उपयोग से सोलेनोसेरिड़े के तीन जेनेरा से नौ प्रजातियां, पेनिड़े के तीन जेनेरा से चार प्रजातियां एवं अरिस्टिडे से एक प्रजाति का उल्लेखनीय आण्विक विचलन (3.3–33.0%) प्रकट हुआ. अधिकतम संभावना एवं बयेशियन दृष्टिकोण के ज़रिए आकृतिपरक विश्लेषण यह साबित करता है कि इन परिवारों की सभी प्रजातियां मोनोफैलेटिक है.वर्तमान विश्लेषण से सोलेनोसेरा जीनस में उपसमूहों के अस्तित्व का पता चला जो विकास की प्रक्रिया के दौरान वितरण की गहराई से मेल खाती पोस्ट्रोस्ट्रल कैरिना की धीमी कमी का सुझाव दिया एवं आगे महाद्वीपीय शेल्फ में जीनस की उत्पत्ति और महाद्वीपीय ढालू तक विस्तार का संकेत देता है. इसके अतिरिक्त हमने इन प्रजातियों को शामिल करके डी एन ए बारकोड डेटाबेस आरम्भ किया है जो इन मूल्यवान क्रस्टेशियन संपदाओं के विकास एवं जैव भूगोल की जांच करने में आगे सहायक होता है.


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