ी एम एफ आर आइ विषिंजम अनुसंधान केन्द्र में सी-गोल्डी, स्यूडान्थियास स्क्वामिपिन्निस के सफलतापूर्वक प्रजनन एवं डिंभक पालन
ी-गोल्डी, स्यूडान्थियास स्क्वामिपिन्निस (पीटेर्स, 1855) उप कुटुम्ब आन्थिन्ने (कुटुम्बः सेरानिडे) में आने वाली वाइब्रन्ट पिंक रंग युक्त और अत्यंत मांग वाली लोकप्रिय अलंकारी मछली है. भा कृ अनु प-सी एम एफ आर आइ विषिंजम अनुसंधान केन्द्र में प्रग्रहण अवस्था में इस मछली के अंडशावक विकास, अंडजनन और डिंभक पालन सफल रूप से किए गए. प्राकृतिक स्थान से प्राप्त 12 किशोर मछलियों के उपयोग से 5टन की धारिता वाले पुनःचक्रण जलजीव पालन प्रणाली (आर ए एस) द्वारा अंडशावक का विकास किया गया. अंड 650 µ के आकार के थे. लगभग 12-14 घंटों की निषेचन अवधि में 29 ℃ पानी के तापमान में अंडों का स्फुटन हुआ. 35वां दिन ये किशोर अवस्था तक पहॅुंच गयी.
ी एम एफ आर आइ के मार्गदर्शन में पिंजरा मछली पालन को लोकप्रियता
ा कृ अनु प-केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सी एम एफ आर आइ), कोच्ची राज्य के मछली पालन एवं पालनेतर समुदायों के बीच पिंजरा मछली पालन प्रचलित करने की वजह से केरल के तटीय जलजीव पालन में प्रगति हो रही है. कम खर्च से विकसित पालन नमूने का केरलवालों के बीच प्रचार हो रहा है, जिससे जलजीव पालन में बढ़ावा मिलेगा. भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ के समुद्री संवर्धन प्रभाग ने राज्य क सात जिलों के 50 लोगों को मुख्यालय, कोच्ची में 16 और 17 मार्च के दौरान केरल के पानी में वाणिज्यिक प्रमुख मछली प्रजातियों का पिंजरे में पालन करने में क्षमता वर्धन प्रशिक्षण दिया.
समुद्री संवर्धन में अखिल भारतीय नेटवर्क परियोजना (ए आइ एन पी-एम) के अंदर देश में कम लागत से मछली पालन में प्रशिक्षण देने के भाग के रूप में यह प्रशिक्षण आयोजित किया गया. केरल में भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ द्वारा पिंजरा मछली पालन में इच्छुक व्यक्तियों को पिंजरा सजाने और स्थापना, पालन के लिए स्थान चयन, पछली संतति चयन, खाद्य प्रबंधन एवं विपण में प्रशिक्षण दिया गया. लोगों को पिंजरा मछली पालन में सफल उद्यमी बनाना प्रशिक्षण का उद्देश्य था.
प्रशिक्षण की प्रतिक्रिया
प्रशिक्षण के तुरंत बाद प्रतिभागियों ने अपने अपने क्षेत्रों के खारा पानी और मीठा पानी क्षेत्रों में पिंजरों में विभिन्न मछली प्रजातियों जैसे पेर्ल स्पोट, समुद्री बास, रेड स्नाप्पर, तिलापिया और जयन्ट ट्रेवल्ली का पालन शुरू किया. यह उल्लेखनीय है कि 31 मार्च 2017 तक राज्य में मछली क्रांति लाने के उद्देश्य से करीब 40 मछुआरे पिंजरा मछली पालन उद्यम में बदल गए.
भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ द्वारा समुद्री शैवाल से मोटापा विरोध (एन्टी ओबििटी)दवा का विकास
भा कृ अनु प-केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सी एम एफ आर आइ) मुख्यालय, कोच्ची ने समुद्री शैवालों से एन्टी-ओबिसिटी न्यूट्रास्यूटिकल विकसित किया. CadalminTM Antihypercholesterolemic extract (CadalminTM ACe) नामक दवा मोटापा और डिसलिपीडेमिया का प्राकृतिक निवारक है. समुद्री शैवालों, जो भारत के तटीय समुद्र में खूब पाए जाने वाले समुद्र की प्राकृतिक इनाम हैं और असाधारण औषधीय गुणों से समृद्ध है, से भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ के वैज्ञानिकों ने इस एक्स्ट्रैक्ट तैयार किया. ॉ.काजल चक्रबर्ती, वरिष्ठ वैज्ञानिक, समुद्री जैवप्रौद्योगिकी प्रभाग, भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ, जिन्होंने उत्पाद विकसित किया, ने बताया कि न्यूट्रास्यूटिकल तैयार करने के लिए समुद्री शैवालों में निहित बायोएक्टीव फार्मकोफोर का उपयोग किया गया है. “CadalminTM Antihypercholesterolemic extract डिसलिपीडेमिया या ओबिसिटी कम करने हेतु बेहतर साबित हुआ है. इस उत्पाद में चुने गए समुद्री शैवालों की 100% प्राकृतिक समुद्री जैवसक्रिय सामग्रियॉं मौजूद हैं और 400 मि.ग्रा.कैप्स्यूलों में यह उपलब्ध है ”, उन्होंने बताया. |
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“किए गए क्लिनिकल परीक्षणों के अनुसार इस न्यूट्रास्यूटिकल का कोई पार्श्वफल नहीं है. हमारी जानकारी के अनुसार यह न्यूट्रास्यूटिकल ओबिसिटी और डिसलिपीडेमिया के प्राकृतिक निवारक के रूप में समुद्री शैवालों से प्राप्त 100% प्राकृतिक जैवसक्रिय सामग्रियों से निर्मित एकमात्र उत्पाद है.” डॉ. चक्रबर्ती ने बताया.
डॉ. पी.विजयगोपाल, अध्यक्ष, समुद्री जैवप्रौद्योगिकी प्रभाग ने कहा कि भारत एवं विदेश की शाकाहारी आबादी की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यह उत्पाद सहायक निकलेगा. “CadalminTM Antihypercholesterolemic extract पर उपभोक्ताओं की राय और भारत एवं विदेश में रहने वाले अनेक शाकाहारी आबादी के लिए विपणन की शक्यता बहुत ही आशादायक है”, उन्होंने कहा.
“कच्ची सामग्रियों से लिए गए सक्रिय तत्वों को बड़े पैमाने में फैक्टरी एकक में अनुकूल किया गया. फैक्टरी एकक में सक्रिय तत्वों की प्राप्ति 20% से अधिक पायी गयी, जो न्यूट्रास्यूटिकल उत्पाद की वाणिज्यिक साध्यता की ओर इशारा करती है. एक फार्मस्यूटिकल कंपनी के साथ उत्पाद का लाइसेंस किया गया”, उन्होंने कहा.
ा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ का 4वां न्यूट्रास्यूटिकल उत्पाद
CadalminTM Antihypercholesterolemic extract भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ द्वारा विकसित न्यूट्रास्यूटिकल उत्पादों की श्रेणी में चौथा है. दो एन्टी-आथ्रिटिक और एक एन्टी-डायबेटिक न्यूट्रास्यूटिकल संस्थान द्वारा विकसित अन्य तीन उत्पाद हैं. इन की प्रौद्योगिकियों को फार्मस्यूटिकल कंपनियों द्वारा वाणिज्यीकरण किया गया है.
ॉ.ए.गोपालकृष्णन, निदेशक, भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ के अनुसार कम उपयोग किए गए समुद्री शैवालों में से और अधिक स्वास्थ्य उत्पादों के विकास के कार्य हो रहे हैं. “भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ तटीय समुदायों की आजीविका के विकल्प के रूप में भारत के तटीय क्षेत्रों में समुद्री शैवाल का पालन मानकीकृत करने के कार्य में लगा हुआ है. बेमौसम में मछुआरों की आमदनी की प्रतिपूर्ति करने के लिए यह प्रत्याशित है”, डॉ.ए.गोपालकृष्णन ने कहा.
ी बी टी द्वारा प्रायोजित
ात्स्यिकी पेशेवरों के लिए आण्विक जीवविज्ञान एवं जैवप्रौद्योगिकी में राष्ट्रीय प्रशिक्षण
ी एम एफ आर आइ द्वारा आंडमान निकोबार द्वीप समूह के प्रगतिशील मछुआरों के बीच समुद्री शैवाल के पालन की प्रौद्योगिकी का प्रसार
एक्सपोशर एवं अध्ययन दौरा के भाग के रूप में आंडमान एवं निकोबार प्रशासन के मात्स्यिकी निदेशालय के 13 प्रगतिशील मछुआरों और दो क्षेत्र कार्मिकों ने 21 फरवरी 2017 को मंडपम क्षेत्रीय केन्द्र का मुआइना किया. इससे पहले सी एम एफ आर आइ द्वारा 2-4 अगस्त 2016 के दौरान भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ मंडपम क्षेत्रीय केन्द्र में मात्स्यिकी निदेशालय, आंडमान के कार्मिकों को समुद्री शैवाल पालन रीतियों पर प्रशिक्षण दिया है. इस प्रशिक्षण का अनुक्रमण करते हुए अध्ययन दौरा के दौरान समुद्री मछुआरों ने समुद्री शैवाल पालन पर वैज्ञानिकों के साथ चर्चा की और बांस से प्लवमान बेड़ा बनाने, रस्सी में संतति सामग्रियॉं (समुद्री शैवाल के टुकड़े) बांधने, रस्सियॉं बेड़ों में बांधकर समुद्र में लगाने के संबंध में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया. डॉ. जोण्सन बी., वैज्ञानिक ने इस कार्यक्रम का समन्वयन किया.
माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भा कृ अनु प-सी एम एफ आर आइ द्वारा मछुआरों के लिए विकसित मोबाइल आप्प की सराहना
माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भा कृ अनु प-केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सी एम एफ आर आइ) द्वारा टाटा परामर्श सेवा (टी सी एस) और महासागरीय सेवाओं का भारतीय राष्ट्रीय केन्द्र (आइ एन सी ओ आइ एस) के सहयोग से विकसित मोबाइल परामर्श सेवा mKRISHI®Fisheries की सराहना की.
फरवरी 26, 2017 को आयोजित मन की बात कार्यक्रम में प्रधान मंत्री ने इस प्रौद्योगिकी को गरीब मछुआरों के लिए नवोन्मेष के रूप में ज़ोर दिया और बताया कि मोबाइल आप्प सरल है, बल्कि मछुआरा समुदाय में इसका शक्तिशाली प्रभाव है. उन्होंने आगे कहा कि मछुआरों द्वारा कम समय में अधिकतम मछली होने वाले क्षेत्र तक पहॅुंने और इस वजह से रोजी रोटी कमाने के लिए उपयोग किया जा सकता है.
“जब एक छुआरा मछली पकड़ने के लिए समुद्र जाता है, यह मोबाइल आप्प उनको अधिकतम मछली होने वाले क्षेत्र की सूचना पर मार्गदर्शन और इसके अतिरिक्त हवा की दिशा तथा गति, पानी के तरंगों की ऊंचाई आदि की सूचना प्रदान करने में सहायक निकलता है”, प्रधान मंत्री ने कहा.
mKRISHI®Fisheries App एन ओ ए ए और भारतीय सैटलाइटों से प्राप्त दूर संवेदन आंकडों के आधार पर एन सी ओ आइ एस द्वारा उत्पन्न शक्य मत्स्यन क्षेत्र (पी एफ इज़ेड), समुद्री सतह का तापमान, मौसम और पादपप्लवक, जो कई मछली प्रजातियों का आहार है, पर सूचना प्रदान करता है.
यह आप्प ये सूचनाएं समेकित करते हुए जावा और एन्ड्रोइड मोबाइल फोनों में आसानी से प्रयोग किए जाने वाले आइकनों की सहायता से आवश्यक परामर्श प्रदान करता है. इसके अतिरिक्त, भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ, आइ एन सी ओ आइ एस और टी सी एस के विशेषज्ञों के बहु-आयामी अनुसंधान एवं फील्ड वर्क के परिणामस्वरूप विकसित इस आप्प को विदेश मंत्रालय और नीति आयोग द्वारा देश के बेहतर 20 नवोन्मेषों में एक के रूप में विनिर्णित किया गया है.
विदेश मंत्रालय और नीति आयोग द्वारा आयोजित सामाजिक नवोन्मेष पर प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्रतियोगिता 2016 में इस प्रौद्योगिकी को स्थान मिला. कुल 774 आवेदनों में से इस आप्प को बेहतरीन सामाजिक नवोन्मेषों का 20वां स्थान प्राप्त हुआ. भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ ने पहले ही महाराष्ट्र की 56 मछुआरा समितियों को यह आप्प प्रदान किया है.
मछुआरों द्वारा अपनी मत्स्यन गतिविधियों पर योजना बनाने हेतु इस आप्प का व्यापक तौर पर प्रयोग किया जा रहा है. शक्य मत्स्यन क्षेत्र पर सूचना मछुआरों को अनावश्यक ट्रिप छोड़कर कम समय में मत्स्यन करने और इससे जुड़े हुए डीज़ल, बर्फ तथा श्रम की लागत कम करने में सहायक निकलती है. जब आप्प में सूचना मानचित्र नीले रंग का हो, तब मछुआरों को मत्स्यन के लिए जाने की सलाह दी जाती है. आप्प पांच दिन पहले पूर्वानुमान देगा, जिससे बहु दिवसीय मत्स्यन ट्रिप करने वाले ट्रालरों को भी मत्स्यन के लिए जाने की आवश्यक सूचना प्राप्त होती है.
गहरे सागर में डाटा सिग्नल की उपलब्धता का अभाव मछुआरों की बड़ी चुनौती थी. फिर भी, टी सी एस और टाटा टेलीसेर्वीसस ने महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के समुद्र में 30 कि.मी. की दूरी तक विस्तार करने का प्रायोगिक कार्यक्रम आयोजित किया. इससे मछुआरों को समुद्र में होने पर भी मछली की कीमत के संबंध में बात-चीत करने का अवसर मिलता है और समग्र परिवहन में अनुकूलन करते हुए ताज़ी मछली मांग के अनुसार के पत्तन पर पहॅुंचाने में आसान होता है.
भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ टी सी एस की सहकारिता से मेरा गॉव मेरा गौरव (एम जी एम जी) पहल के अंदरगत और अधिक मछुआरा समितियों तक पहॅुंचाने की योजना तैयार कर रहा है.
एरणाकुलम कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा जलजीव पालन में स्टार्टअप को बढ़ावा
भा कृ अनु प-सी एम एफ आर आइ का एरणाकुलम कृषि विज्ञान केन्द्र (के वी के) युवा लोगों को जलजीव पालन में उद्यमी बनाने के उद्देश्य से क्षमता वर्धन प्रशिक्षण दे रहा है.
जलजीव पालन तकनीशियन नामक एक महीने के प्रशिक्षण के अंदर जलजीव पालन के क्षेत्र में लगे हुए चुने गए 20 युवाओं को मछली पालन के विभिन्न पहलुओं में कुशलता विकास का प्रशिक्षण देने की तैयारियॉं की जाती हैं.
जलजीव पालन के विविध पहलुओं स्टार्टअप को बढ़ावा देने हेतु युवा लोगों में पालन तथा उद्यमिता कुशलता विकसित करने के उद्देश्य से कुशलता विकास और उद्यमिता मंत्रालय के अंदर राष्ट्रीय कुशलता विकास निगम की सहायता से फरवरी 27 को कुशलता विकास पाठ्यक्रम प्रारंभित किया गया. प्रशिक्षण के दौरान पिंजरे में मछली पालन, मीठा पानी एवं खारा पानी मछली पालन, शंबु पालन, केकड़ा पालन, महाचिंगट पालन और शुक्ति पालन जैसे विविध पालन तरीके सम्मिलित किए गए हैं. इसके अतिरिक्त पानी की गुणता परीक्षण, रोग की निगरानी, खाद्य निर्माण, जीवित चारा पालन, स्फुटनशाला प्रबंधन, पेर्ल स्पोट (करिमीन) का संतति उत्पादन, मूल्य वर्धन, जलजीवशाला प्रबंधन, पैकिंग तरीके, मछली विपणन और उद्यमिता आदि विषय भी पाठ्यक्रम में सम्मिलित किए गए हैं.
प्रशिक्षण के दौरान सहभागियों को फील्ड यात्रा, मछुआरों के साथ आपसी विनियम, पिंजरा सजाना, तालाब की तैयारी और उपकरणों के प्रचालन में कुशलता प्रदान की जाती है और इनके अतिरिक्त सी एम एफ आर आइ, सी आइ एफ टी, एम पी ई डी ए, सी यु एस ए टी और के यु एफ ओ एस के विशेषज्ञों के व्याख्यान भी दिए जाते हैं.
पाठ्यक्रम दिनांक 25 मार्च को सफल रूप से समाप्त होने के बाद भागीदारों को कृषि विज्ञान केन्द्र की सहायता से जलजीव पालनकारों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वतंत्र रूप से कार्यरत होने की अनुमती दी गयी. प्रशिक्षण पूरा किए जाने के बाद मछुआरों को सहायता प्रदान करने और जलजीव पालन में गुणात्मक मानक सुनिश्चित करने के लिए युवाओं के कार्य दल का गठन किया जाएगा. कृ वि कें के नेतृत्व में पिषला में पहले ही कडमकुडुी मत्स्य कृषि कर्म सेना (अक्वा कार्य दल) गठित की गयी है, जो युवा मछुआरा तेरुविलापरम्बिल श्रीकुमार के नेतृत्व और कृ वि कें के सहयोग से कार्यरत है.
कुशलता विकास प्रशिक्षण से मछली एवं चिंगट पालन के क्षेत्र में अत्यधिक बढ़ावा मिलेगी. प्रग्रहण मात्स्यिकी गतिरोध की अवस्था तक पहॅुंचने की स्थिति में इस तरह के कुशलता विकास प्रशिक्षण से युवा उद्यमियों को प्रोत्साहन देने में सहायक निकलेगा. दस तरह के कार्यक्रमों से जलजीव पालन के सेक्टर में साध्यता की गुंजाइश है. इस एक माहिक प्रशिक्षण का दीर्घकालीन उद्देश्य जलजीव पालन के क्षेत्र में रोजगार के अवसर बनाना है. प्रशिक्षण के लिए प्राप्त आवेदन पत्रों में से भागीदारों का चयन किया गया.
डॉ.षिनोज सुब्रमण्यन, अध्यक्ष, के वी के और डॉ.पी.ए.विकास, मात्स्यिकी में विषय विशेषज्ञ प्रशिक्षण कार्यक्रम का समन्वयन कर रहे हैं. सहभागियों को प्रशिक्षण पूरा करने के बाद राष्ट्रीय कुशलता विकास निगम का प्रमाण पत्र दिया जाएगा, जिससे उनको सरकार द्वारा मानकीकृत जलजीव पालन परामर्शक के रूप में काम कर सके.
देश के चुने गए कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. एरणाकुलम के वी के केरल से चुने गए दो कृषि विज्ञान केन्द्रों में एक है, दूसरा मलप्पुरम के वी के है. यह कार्यक्रम प्रधान मंत्री कुशल विकास योजना (पी एम के वी वाय) का भाग है, जो अर्थपूर्ण, उद्योग प्रासंगिक, कुशलता पर आधारित प्रशिक्षण के माध्यम से 24 लाख भारतीय युवाओं को अवसर प्रदान करने हेतु भारत सरकार की विशेष पहल है. पी एम के वी वाय का लक्ष्य युवाओं को देश की गरीबी हटाने हेतु आय कमाने में कुशलता पर आधारित प्रशिक्षण द्वारा सक्षम बनाना है.
ा कृ अनु प-सी एम एफ आर आइ द्वारा भारत के समुद्री मत्स्यन केन्द्रों‚ पर ी आइ एस पर आधारित ाटाबेस ा विकास
समुद्र मेंमछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिएाटाबेस भारतीय नौसेना को सौंप दिया
समुद्र में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किए गए प्रमुख विकास के रूप में भा कृ अनु प-सी एम एफ आर आइ (सी एम एफ आर आइ) ने भारतीय तट के समुद्री मत्स्यन केन्द्रों पर जी आइ एस पर आधारित डाटाबेस विकसित किया गया. समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भा कृ अनु प-सी एम एफ आर आइ ने देश के पूरे मछली अवतरण केन्द्रों की सूची तैयार की है, जिसमें इनके जी आइ एस (जियोग्राफिकल इनफोर्मेशन सिस्टम) स्थान, मत्स्यन गतिविधि का प्रकार, मत्स्यन की मौसमिकता और हर एक मत्स्यन केन्द्र से मत्स्यन परिचालन का विस्तार आदि का विवरण दिया गया है. तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा उपायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु संस्थान ने डाटाबेस भारतीय नौसेना को सौंप दिया.
डॉ.ए.गोपालकृष्णन, निदेशक, भा कृ अनु प-सी एम एफ आर आइ ने दक्षिण नौसेना कमान, कोच्ची में आयोजित बैठक में दस्तावेज ाइस अड्मिरल ए आर कारवे ए वी एस एम, फ्लैग अधिकारी कमान्डिंग इन चीफ, दक्षिण नौसेना कमान को सौंप दिया.
मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और पड़ोसी देशों से भारतीय सीमा के समुद्री क्षेत्रों में घुसपैठ की निगरानी की दिशा में यह डाटाबेस प्रमुख विकास होगा. डाटाबेस में परंपरागत अवतरण केन्द्रों और आधुनिक मत्स्यन हार्बरों का विवरण दिया गया है. समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयास सशक्त बनाने के लक्ष्य से दक्षिण नौसेना कमान, कोच्ची से प्राप्त अनुरोध पर भा कृ अनु प-सी एम एफ आर आइ के वैज्ञानिकों के ग्रुप ने इस डाटाबेस विकसित किया.
डॉ.ए.पी.दिनेशबाबु, प्रधान वैज्ञानिक, भा कृ अनु प-सी एम एफ आर आइ मांगलूर अनुसंधान केन्द्र ने इन्वेंट्री तैयार करने के लिए 22 वैज्ञानिकों और 85 अन्य कर्मचारियों के टीम को समन्वित किया. अवतरण केन्द्रों और मत्स्यन परिचालन क्षेत्रों की सूचना भारतीय तट के मछुआरों की आजीविका की सुरक्षा समस्याओं को संरक्षित करते हुए योजनाएं बनाने में सक्षम होगी. यह दस्तावेज भारतीय तट की समग्र मत्स्यन गतिविधियों और मात्स्यिकी संपदाओं की सूचना जी आइ एस प्रारूप में लाने हेतु भा कृ अनु प-सी एम एफ आर आइ द्वारा प्रलेखित डाटाबेस का संपूर्ण संग्रह है.
पश्चिम बंगाल में ी एम एफ आर आइ का नय क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र
केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सी एम एफ आर आइ) ने पश्चिम बंगाल और ओड़ीषा की समुद्री मात्स्यिकी में अनुसंधान और विकास की आवश्यकताओं की पूर्ति के उद्देश्य से पश्चिम बंगाल के दिघा में नया क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र खोला है. यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भा कृ अनु प) के अंदर देश के सबसे बडे मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान का 11वां क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र है.
िल्सा मछली पर अनुसंधान
केन्द्र द्वारा पश्चिम बंगाल के वाणिज्यिक प्रमुख मछली संपदाओं में प्रमुख एवं लोकप्रिय मछली हिल्सा के निर्धारण एवं आकलन पर प्रमुख रूप से ध्यान दिया जाएगा. हाल के वर्षों से लेकर हिल्सा की उपलब्धता में गंभीर रूप से गिरावट हो रहा है और सी एम एफ आर आइ केन्द्र इस मछली प्रजाति के परिरक्षण तथा टिकाऊ फसल संग्रहण के लिए प्रभावकारी संपदा प्रबंधन रीतियों द्वारा अनुसंधान गतिविधियॉं आयोजित करेगा.
केन्द्र बंगाल तथा ओड़ीषा राज्यों में मत्स्यन पोतों की इष्टतम संख्या और मछली स्टॉक के प्रबंधन के लिए विनियम लागू किए जाने के संबंध में सरकारों को परामर्श प्रदान देगा. इस क्षेत्र की समुद्री मछली संपदाओं के प्रबंधन करने में समुद्री मछली अवतरण केन्द्रों की नियमित रूप से निगरानी की जाएगी ताकि मछुआरे इससे लाभान्वित होंगे. राज्य के पर्यावरणीय तथा भूवैज्ञानिक पहलुओं पर ध्यान देते हुए वाणिज्यिक प्रमुख मछलियों के पालन के लिए सी एम एफ आर आइ द्वारा विकसित समुद्री संवर्धन प्रौद्योगिकियों को इस क्षेत्र में लोकप्रिय कराया जाएगा.
केन्द्र के उद्घाटन के कार्यक्रम में डॉ.जे.के.जेना, उप महानिदेशक (मात्स्यिकी), भा कृ अनु प मुख्य अतिथि रहे, उन्होंने कहा कि दिघा में नया अनुसंधान केन्द्र राज्य की समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान की आवश्यकताओं की पूर्ति और तटीय मछुआरों की आजीविका बढ़ाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है. उन्होंने कहा – “पश्चिम बंगाल और उड़ीषा में समुद्री प्रग्रहण मात्स्यिकी और समुद्री संवर्धन में यत्र-तत्र अनुसंधान किए जाने पर भी लक्षित तरीके के अनुसंधान की कमी है. इस उद्देश्य से भा कृ अनु प-सी एम एफ आर आइ ने इस राज्य में नया अनुसंधान केन्द्र खोला.” उन्होंने यह भी कहा– “हर समुद्रवर्ती राज्य के लिए सी एम एफ आर आइ द्वारा मात्स्यिकी प्रबंधन योजनाएं विकसित की जा रही है. हर एक राज्य की समुद्री मात्स्यिकी के वैज्ञानिक प्रबंधन में सुविधा लाने लायक प्रबंधन नीति के मार्गदर्शनों की रूपकल्पना की जा रही है.
मछली की शक्य प्राप्ति, अनुकूलतम बेड़ा आकार और इंजन पावर और यान के आकार का अनुकूलतम मिश्रण आदि का आकलन राज्य को केन्द्र का योगदान होगा. तटीय आवास तंत्र और मात्स्यिकी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर भी नए केन्द्र के अनुसंधान का मामला होगा.
दिघा केन्द्र द्वारा मछुआरा समुदायों की आजीविका बढ़ाने के उद्देश्य से मछली संपदाओं के परिरक्षण एवं प्रबंधन पर क्षमता वर्धन तथा जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे.
सी एम एफ आर आइ के अन्य क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र मंडपम, चेन्नई, मांगलूर, मुम्बई, टूटिकोरिन, विशाखपट्टणम, कालिकट, कारवार, विषिंजम और वेरावल में स्थित हैं.
प्रशिक्षण कार्यक्रम
वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ एनिमल एंड फिशरीस सयन्स की सहकारिता से केन्द्र में समुद्री पिंजरा पालन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में पूर्व मिडनापुर जिले के विभिन्न समितियों के कुल 54 मछुआरों और मछली पालनकारों ने भाग लिया. इस में पिंजरे का रूपायन एवं सजावट, परिचालन और पालन के लिए आवश्यक नीतियों जैसे इंजिनीयरिंग तथा आर्थिक पहलुओं पर सहभागियों को व्याख्यान दिए गए.
ी एम एफ आर आइ में इंडियन मैरिकल्चरिस्ट मेला
देश में समुद्री संवर्धन शिक्षा, अनुसंधान एंव विकास के 37 वर्षों के यादगार के रूप में भा कृ अनु प- केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सी एम एफ आर आइ) में समुद्री संवर्धन शैक्षिक कार्यक्रम पूरा किए गए प्रशस्त वैज्ञानिकों, योजनाकारों, अनुसंधान प्रबंधकों, अकादमीशियनों, उद्योगकारों, बैंककारों और प्रशासकों की बैठक संस्थान मुख्यालय, कोच्ची में 8 और 9 अप्रैल 2017 को आयोजित की गयी.
पूरे देश के विशेषज्ञों, जिनें डॉ.जे.के.जेना, उप महानिदेशक (मात्स्यिकी), भा कृ अनु प, डॉ.सी.वी.वासुदेवप्पा, कुलपति, कृषि एवं बागवानी विज्ञान विश्वविद्यालय, शिवमोगा, पद्म भूषण प्रोफसर एम.वी.पाइली, प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं भूतपूर्व कुलपति, कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, डॉ.ई.जी.सैलास, भूतपूर्व निदेशक, भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ, डॉ.के.के.विजयन, निदेशक, भा कृ अनु प-सी आइ बी ए और समुद्री मात्स्यिकी एवं जलजीव पालन में लगे हुए करीब 50 उद्योगकारों ने भाग लिया.
सभा का संबोधन करते हुए डॉ.जे.के.जेना ने देश के मछली उत्पादन में बढ़ावा लाने हेतु समुद्री संवर्धन में निवेश करने के लिए उद्योगकारों से आग्रह प्रकट किया. प्रग्रहण मात्स्यिकी में वर्तमान संकट का संदर्भ देते हुए उन्होंने चिंगट पालन में उद्यमिता करने के बजाय समुद्री संवर्धन की और ध्यान देने के लिए उद्योगकारो से कहा.
भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ के स्नातकोत्तर एवं डॉक्टरी उपाधियों के समुद्री संवर्धन बैचों के पूर्व छात्र भारत के समुद्री मात्स्यिकी एवं जलजीव पालन क्षेत्र के शक्त दल है और नीति ढांचा निर्माण, अनुसंधान, प्रशासन और उद्यमिता के पहलों में उनकी सक्रिय योगदान है. एफ ए ओ-यु एन डी पी दिशानिर्देशों और वित्त पोषण के आधार पर भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ में कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सी यु एस ए टी). की संबद्धता के साथ वर्ष 1979 में समुद्री संवर्धन में स्नातकोत्तर एवं पीएच. डी कार्यक्रमों का प्रारंभ किया गया. वर्ष 1993 में इन कार्यक्रमों को केन्द्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान, मुम्बई को बदल दिया गया.
इस अवसर पर डॉ.पी.एस.बी.आर.जेम्स, भूतपूर्व निदेशक, भा कृ अनु प- सी एम एफ आर आइ, डॉ.वेदव्यास राव, डॉ.ए. नोबिल, डॉ.पी.जयशंकर, डॉ.सुरेश कुमार और पी.सुरेन्द्रन ने भाषण दिए.